About Us

Let’s Inspire Bihar is a voluntary social, cultural and ed-ucational initiative that seeks to promote and work upon the themes of Education, Egalitarianism and Entrepreneur-ship in order to contribute towards the establishment of a better future for Bihar. It aims to connect such committed individuals, who have on a voluntary basis opted to contrib-ute towards future building on any of the core themes. The inspiration emanating from Bihar's magnificent heritage, which since the most ancient times had made its mark felt in the then contemporary world, is the main driving force behind the initiative. As one proudly recalls the past of Bi-har, as a land of knowledge, as a land of military might with egalitarian political traditions and as a land of entrepre-neurship, the initiative seeks to encourage the present gen-eration to ponder over the reasons which had once brought such glory and also to brainstorm upon the reasons respon-sible for the decline with time in the process of natural evo-lution of the land, which once led the entire nation, that had its boundaries more widespread than the present day. The initiative thus promotes the need to learn from the broadminded and foresighted vision of such illustrious an-cestors, who only due to such vision and energy with syner-gy, could achieve so much at a time when available re-sources and infrastructure like roads, means of transport and communication were dismal and technology was still not as developed as the present day. It is with such under-standing that the zeal to contribute towards future building would emerge from within, since it is important that the cumulative energy should be channelised in proper direction for desired results. The initiative is based upon sharing the understanding and the inspiration and in motivating each other further in the wake of difficult times to prepare with faith, grit and determination for the future.

बिहार की भूमि प्राचीन काल से ही ज्ञान, शौर्य एवं उद्यमिता की प्रतीक रही है । हम उन्हीं यशस्वी पूर्वजों के वंशज हैं जिनमें अखंड भारत के साम्राज्य को स्थापित करने की क्षमता तब थी जब न आज की भांति विकसित मार्ग थे, न सूचना तंत्र और न उन्नत प्रौद्योगिकी । यह हमारे पूर्वजों के चिंतन की उत्कृष्टता ही थी जिसने बिहार को ज्ञान की उस भूमि के रूप में स्थापित किया जहाँ वेदों ने भी वेदांत रूपी उत्कर्ष को प्राप्त किया । ज्ञान की परंपरा ने ही कालांतर में ऐसे विश्वविद्यालयों को स्थापित होते देखा जहाँ संपूर्ण विश्व के विद्वान अध्ययन हेतु लालायित रहते थे । उर्जा निश्चित आज भी वही है, आवश्यकता केवल चिंतन की है कि उर्जा का प्रयोग हम कहाँ कर रहे हैं । यदि पूर्वजों के कृतित्वों से हम प्रेरित होते हैं तो स्वयं की असीमित क्षमताओं के विषय में भी हमें स्पष्ट हो जाना चाहिए । आवश्यकता लघुवादों यथा जातिवाद, संप्रदायवाद आदि संकीर्णताओं से परे उठकर राष्ट्रहित में आंशिक ही सही परंतु कुछ निस्वार्थ सकारात्मक सामाजिक योगदान समर्पित करने की है । आइए, हम चिंता नहीं अपितु चिंतन करें, आपस में संघर्ष नहीं अपितु सहयोग करें, उज्ज्वलतम भविष्य हेतु हम मिलकर कुछ प्रयास करें । केवल स्वयं तक सीमित मत रहें, बिहार की विरासत में समाहित इस अद्भुत प्रेरणा का प्रसार करें । "Let's Inspire Bihar !" या "आईए, मिलकर प्रेरित करें बिहार !" क्या है ? #LetsInspireBihar क्या है, यह जानने के पूर्व सर्वप्रथम आप स्वयं से यह प्रश्न करें कि क्या आप मानते हैं कि संपूर्ण भारतवर्ष के उज्ज्वलतम भविष्य की प्रबल संभावनाएं कहीं न कहीं उसी भूमि में समाहित हो सकती हैं जिसने इतिहास के एक कालखंड में संपूर्ण अखंड भारत के साम्राज्य का नेतृत्व किया था और वही भी तब जब न आज की भांति संचार के माध्यम थे, न विकसित मार्ग और न प्रौद्योगिकी ! आप स्वयं से यह प्रश्न करें कि क्या हमें यह स्मरण नहीं है कि बिहार ही #ज्ञान की वह भूमि है जहाँ वेदों ने भी वेदांत रूपी उत्कर्ष को प्राप्त किया तथा ज्ञान के प्राचीन बौद्धिक परंपरा की जब अभिवृद्धि हुई तब इसी भूमि ने बौद्ध और जैन धर्मों के दर्शन सहित अनेक तत्वों एवं सिद्धांतों के जन्म के साथ नालंदा एवं विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों की स्थापना देखी । जहाँ ज्ञान की ऐसी अद्भुत प्रेरणा रही, वहाँ #शौर्य का परिलक्षित होना भी स्वाभाविक ही था और इसी कारण इतिहास स्वयं साक्षी है कि कभी बिहार से ही संपूर्ण अखंड भारत का शासन संचालित था और वह भी सशक्त एवं प्रबल रूप में । #उद्मिता की इस प्राचीन भूमि ने ही ऐतिहासिक काल में ऐसी प्रेरणा का संचार किया जिसके कारण दक्षिण पूर्वी ऐशिया के नगरों तथा यहाँ तक कि राष्ट्रों का भी नामकरण भी इसी भूमि के प्रेरणादायक नगरों के नामों पर होने लगे जिसका सबसे सशक्त उदाहरण वियतनाम है जो चंपा (वर्तमान भागलपुर, बिहार) के ही नाम से लगभग 1500 वर्षों तक संपूर्ण विश्व में जाना गया । यदि ऐसे प्रश्नों का उत्तर स्वीकारोत्मक है, तो बस विचार कीजिए कि वैसे सामर्थ्यवान यशस्वी पूर्वजों के ही हम वंशज क्या वर्तमान में भारत के उज्ज्वलतम भविष्य के निमित्त अपना सर्वाधिक सकारात्मक योगदान समर्पित कर पा रहे हैं ? लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में रहे यूनानी राजदूत मेगास्थनीज ने अपने ग्रंथ इंडिका में तत्कालीन पाटलिपुत्र को उस समय के विश्व के सर्वश्रेष्ठ नगरों की श्रेणी में वर्णित किया था । आप कल्पना कीजिए कि यदि उस समय किसी पाटलिपुत्र निवासी से 2500 वर्ष पश्चात पाटलिपुत्र के स्वरूप के संबंध में पूछा जाता तो भला किस प्रकार के आशान्वित उत्तर मिले रहते और क्यों वह स्वाभाविक भी प्रतीत होते । परंतु वर्तमान परिदृश्य में जब भी भविष्यात्मक संभावनाओं के विषयों में बिहार के युवाओं से वार्ता होती है, जैसे मेरे साथ भी स्वामी विवेकानंद जयंती पर प्रज्ञा युवा प्रकोष्ठ में तथा अनेक अन्य अवसरों पर हुई, तब ऐसी अनुभूति क्यों होती है कि कहीं न कहीं सर्वत्र एक प्रकार की निराशा व्याप्त हो रही है और वर्तमान एवं भविष्य के संबंध में नकारात्मक विचारों की स्थापना भी युवाओं के मध्य हो रही है जो भारत के उज्ज्वलतम भविष्य हेतु सर्वथा अनुचित है । जिस भूमि ने प्राचीनतम काल में ही ऐसे कीर्तिमानों को प्राप्त किया था, यदि उनकी स्वाभाविक प्राकृतिक अभिवृद्धि भी हुई रहती तो निश्चित ही वर्तमान का स्वरूप अत्यंत भिन्न रहता और निश्चित ही यदि भविष्य की संभावनाओं के संबंध में वर्तमान में प्रश्न किए जाते तो उनके उत्तरों में समाहित आशावादिता के भावों में कोई कमी नहीं रही होती । कालांतर में ऐसा क्या होता गया जिसके कारण जो आशावादिता उस काल में स्पष्टता के साथ परिलक्षित होती थी, वह आज के युवाओं से यत्न सहित प्रश्न करने पर भी दर्शित नहीं होती ? आखिर ऐसा क्यों है कि जिस क्षेत्र में कभी संपूर्ण विश्व के विद्वान अध्ययन हेतु दुर्गम मार्गों से सुदूर यात्राएं कर पहुँचने हेतु लालायित रहते थे, वहीं के विद्यार्थी आज परिश्रम एवं पुरुषार्थ के मार्गों से कई अवसरों पर विच्छिन्न प्रतीत होते दिखते हैं तथा अधिकांशतः अन्य क्षेत्रों में अध्ययन एवं जीवनयापन हेतु प्रयासरत रहते हैं ? व्याप्त हो रही संभावित निराशा के प्रतिकार हेतु यह चिंतन करना आवश्यक होगा कि स्वाभाविक उत्कर्ष की प्राकृतिक परंपरा किन कारणों से बाधित हुई और जैसी कल्पना कभी रही होगी, वैसा संभव क्यों नहीं हो सका ! ऐतिहासिक भूमि के स्वाभाविक प्राकृतिक विकास की परंपरा से अत्यंत भिन्न ऐसी अप्राकृतिक वर्तमान परिस्थितियों के प्रादुर्भाव के कारणों पर चिंतन करने से ही समाधान मिलेंगे चूंकि भूमि वही है, उर्जा भी वही है और इसमें भला कहाँ संदेह है कि हम उन्हीं यशस्वी पूर्वजों के वंशज हैं जिनकी प्रेरणा आज भी मन को उद्वेलित करती है और कहती है कि यदि संकल्प सुदृढ़ हो तो इच्छित परिवर्तन अपने माध्यम स्वतः तय कर लेते हैं । यदि हम इतिहास में प्राप्त उत्कर्ष के कारणों पर चिंतन करेंगे तो पाएंगे कि हमारे पूर्वजों की सोच अत्यंत बृहत् थी जो लघुवादों से विभिन्न थी । उर्जा के साथ जिज्ञासा तो हमारे पूर्वजों की ऐसी थी जो सामान्य भौतिक ज्ञान से संतुष्ट होने वाली नहीं थी तथा सत्य के वास्तविक स्वरूप को जानना चाहती थी जिसके कारण ज्ञान परंपरा के उत्कर्ष को समाहित किए उपनिषदों की दृष्टि संभव हो सकी । यदि भूमि के ऐतिहासिक शौर्य के कारणों पर हम चिंतन करें तो वहाँ भी बृहत्ता के लक्षण तब स्पष्ट होते हैं जब हम महाजनपदों के उदय के क्रम में पाटलिपुत्र में महापद्मनंद के राज्यारोहण का स्मरण करते हैं चूंकि जिस काल में अन्य जनपदों में जहाँ पूर्व से स्थापित शाशक वर्ग के अतिरिक्त किसी अन्य वर्ग से सम्बद्ध शासक की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, मगध में केवल सामर्थ्य को ही कुशल शासकों हेतु उपयुक्त लक्षणों के रूप में स्वीकृति प्राप्त हुई थी । ऐसे चिंतन के कारण ही मगध का सबसे शक्तिशाली महाजनपद के रूप में उदय हुआ जिसने कालांतर में साम्राज्य का रूप ग्रहण कर लिया । उत्कृष्ट चिंतन के कारण जहाँ राजतंत्र के रूप में मगध का उदय हुआ, वहीं वैशाली में गणतंत्र की स्थापना भी हुई । यदि कालांतर में ऐसे शौर्य का क्षय हुआ तो उसके कारण शस्त्र और शास्त्र में समन्वय का अभाव ही रहा चूंकि इतिहास स्वयं साक्षी रहा है कि भले ही शास्त्रीय ज्ञान अपने चरम उत्कर्ष पर क्यों न हो, यदि शस्त्रों के सामर्थ्य में कमी आती है तो उत्कृष्ट शास्त्र भी नष्ट हो जाते हैं । यदि कालांतर में हमारा अपेक्षाकृत विकास नहीं हुआ और यदि हम पूर्व का स्मरण करते हुए वर्तमान में वैसा तारतम्य अनुभव नहीं करते तो इसका कारण कहीं न कहीं समय के साथ लघुवादों अथवा अतिवादों से ग्रसित होना ही रहा है अन्यथा जिस भूमि ने इतिहास के उस काल में कभी महापद्मनंद को शाशक के रूप में सहर्ष स्वीकार जन्म विशेष के लिए नहीं परंतु उनकी क्षमताओं पर विचारण के उपरांत किया था, उसके उज्ज्वलतम भविष्य में भला संदेह कहाँ था । यदि वर्तमान में हम विकास में अन्य क्षेत्रों से कहीं पिछड़े हैं और अपने भविष्य को उज्ज्वलतम देखना चाहते हैं तो आवश्यकता केवल और केवल अपने उन यशस्वी पूर्वजों का स्मरण करते हुए लघुवादों यथा जातिवाद, संप्रदायवाद इत्यादि से उपर उठकर राज्य एवं राष्ट्रहित में बृहतर चिंतन के साथ भविष्यात्मक दृष्टिकोण को मन में स्थापित करते हुए निज सामर्थ्यानुसार आंशिक ही सही परंतु निस्वार्थ सामाजिक योगदान अवश्य समर्पित करना होगा । आवश्यकता एक वैचारिक क्रांति की है जो युवाओं के मध्य प्रसारित हो और जो भविष्य निर्माण के निमित्त संगठित रूप में संकल्पित करे । परिवर्तन ही ऋत है ! आवश्यकता आशावादिता के साथ आगे बढ़ने की है । जिस भूमि ने वैदिक काल से ही गार्गी वाचक्नवी एवं मैत्रेयी जैसी विदुषियों को नारी में भी समाहित विद्वता का प्रतिनिधित्व करते देखा हो, उसका भविष्य भला उज्ज्वलतम क्यों न हो । अब यदि इस पर चर्चा करें कि "Let's Inspire Bihar !" के अंतर्गत हम मिलकर किस प्रकार की गतिविधियां कर सकते हैं अथवा किन बिंदुओं पर चिंतन कर सकते हैं, तो इस संदर्भ में भी विचारों को और स्पष्ट करने का प्रयास करता हूँ । जो प्रेरित युवा इस अभियान से जुड़ना चाहते है, वह उपरोक्त बातों तथा निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार कर सकते हैं :- 1. अपनी समृद्ध विरासत तथा स्वयं की क्षमता को जानिए एवं समझिए । 2. मानवीय क्षमता के चरमोत्कर्ष की चर्चा करते हुए मैंने उपनिषदों के अत्यंत प्रेरणादायक एवं महत्वपूर्ण श्लोक "ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवा वसिष्यते ।।" को अनेक अवसरों पर उद्धृत किया है जिसमें यह वर्णन मिलता है कि पूर्ण को खंडित करने पर भी हर खंड पूर्ण ही रहता है और पुनः पूर्ण में ही विलीन हो जाता है; अर्थात् हर आत्मा जो परमात्मा का ही अंशरूप है उसमें उसके सभी गुण समाहित हैं । ऐसे में युवा मन में अपने सामर्थ्य के प्रति किसी प्रकार का संदेह न हो इसके लिए यह अनुभूति आवश्यक है कि ईश्वर (पूर्ण) की वह असीम शक्ति सभी के अंदर पूर्णतः समाहित है और सदैव सही मार्गदर्शन हेतु तत्त्पर भी है । ऐसे में कहीं और न देखकर यदि हम एकाग्रचित्त होकर गहन आत्मचिंतन करेंगे तो सभी के लिए स्वयं मार्गदर्शक तथा इच्छित परिवर्तन के प्रबल वाहक बन जाऐंगे । 3. यह समझना होगा कि स्वयं के सामर्थ्य को जाने बिना जब कई बार दूसरों के अनुसरण के कारण हम अपने मूल्यों से दिग्भ्रमित हो जाते हैं, तब हमारा अपनी मूल क्षमताओं से विश्वास डिग जाता है, जो सर्वथा अनुचित है । 4. यह समझना होगा कि यदि हम प्रतिकूल परिस्थितियों के समक्ष निराश होते हैं तो हम युवावस्था में समाहित उस असीम उर्जा के स्रोत से संभवतः स्वतः विच्छिन्न होते जाते हैं जिसके मूल में आशावादिता एवं सकारात्मकता सन्निहित है । 5. यदि अपने पूर्वजों के कृतित्वों से आप प्रेरित हैं और स्वयं की असीमित क्षमताओं के विषय में स्पष्ट हैं तो केवल स्वयं तक सीमित मत रहिए, इस अद्भुत प्रेरणा का प्रसार कीजिए । 6. लघुवादों यथा जातिवाद, संप्रदायवाद, लिंगभेद आदि संकीर्णताओं से परे उठकर बिहार तथा भारत के उज्ज्वलतम भविष्य के निर्माण हेतु बृहत् चिंतन करें तथा दूसरों को भी प्रेरित करें । 7. प्रेरित युवा संगठित होने का प्रयास करें जिससे नकारात्मकता के विरुद्ध युद्ध हेतु संकल्पित सकारात्मक विचारों की शक्ति प्रबल हो उठे । संगठन को बृहत् स्वरूप प्रदान करने हेतु "Let's Inspire Bihar" के जिलावार चैप्टरों से सोशल मीडिया एवं भौतिक माध्यमों से जुड़ें जिनकी स्थापना आपके जिले के प्रेरित युवा समन्वयकर्ताओं द्वारा की जा रही है । बिहार के सभी जिलों के युवाओं और अप्रवासी बिहारवासियों के लिए भी प्रारंभ में सोशल मीडिया के माध्यमों ही चैप्टरों को प्रारंभ किया जा रहा है जिनसे जुड़ने के लिए आप अपने जिले या नगर से संबंधित फेसबुक पेज से जुड़ सकते हैं तथा इस लिंक का प्रयोग कर सकते हैं ! https://forms.gle/bchSpPksnpYEMHeL6 ताकि आपके क्षेत्र से संबंधित समन्वयकर्ता आपसे संपर्क स्थापित कर सकें । 8. प्रेरित युवाओं के साथ अपने व्यस्त समय में से कुछ समय सकारात्मक सामाजिक गतिविधियों के निमित्त चिंतन एवं योगदान हेतु भी समर्पित करें । मुख्य उद्देश्य #3Es यथा #शिक्षा (#Education), #समता (#Egalitarianism) एवं #उद्यमिता (#Entre-preneurship) के ऐतिहासिक भावों को पुनः जागृत करने की है । 9. जो लघुवादों से ग्रसित हैं तथा दिग्भ्रमित हो रहे हैं उनके मार्गदर्शन हेतु अपने स्तर से भी प्रयास करें । उन्हें समझाने का प्रयास करें कि यदि व्यक्ति अपने वास्तविक सामर्थ्य को जान ले तथा सफलता प्राप्त करने के निमित्त अत्यंत परिश्रम करे तो कोई भी लक्ष्य असाध्य नहीं रह जाता । मिलकर, हम निश्चित ही राष्ट्रहित में अपने जीवन काल में कुछ उत्कृष्ट योगदान समर्पित कर सकते हैं । 10. सकारात्मकता विचारों एवं प्रेरणादायक उदाहरणों को सोशल मीडिया पर #letsinspirebihar हैशटैग के साथ साझा करें । भविष्य परिवर्तन के निमित्त युवाओं द्वारा संकल्पित सकारात्मक चिंतन एवं योगदान ही उज्ज्वलतम भविष्य की दिशा स्थापित करने का एकमात्र विकल्प है । इतिहास की प्रेरणा में ऐसी अद्भुत शक्ति समाहित है जो बिहार समेत संपूर्ण भारतवर्ष के भविष्य को परिवर्तित करने की क्षमता रखती है । बिहार के उज्ज्वलतम भविष्य के निर्माण हेतु संकल्पित अभियान #LetsInspireBihar युवाओं के मध्य तीव्रता के साथ गतिमान है ! स्वैच्छिक रूप से प्रेरित एवं संकल्पित युवाओं द्वारा बिहार के सभी जिलों में अध्यायों (चैप्टरों) का गठन किया गया है जिसमें जिले में निवास कर रहे व्यक्तियों के साथ-साथ अप्रवासियों को भी जोड़कर सामूहिक रूप में संगठित सामर्थ्यानुसार 3Es यथा शिक्षा (Education), समता (Egalitarianism) तथा उद्यमिता (Entrepreneurship) के विकास से संबंधित सकारात्मक कार्यों को संपादित करने का प्रयास किया जा रहा है । अनेक जिलों में अनुमंडल से लेकर प्रखंड के स्तर तक गठित उप-अध्यायों (सब-चैप्टरों) में सकारात्मक सामाजिक योगदान की दिशा में कार्य किए जा रहे हैं । बिहार के बाहर रह रहे मूल निवासियों को जोड़ने के लिए दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, कोलकाता, पुणे जैसे अध्यायों का गठन किया गया है ताकि वैसे सक्षम बिहारवासी जो बिहार के बाहर रहते हुए भी अपने जिलों के अध्यायों से जुड़कर सामाजिक तथा शैक्षणिक योगदान करना चाहते हैं, उन्हें स्थानीय स्तर पर भी नित्य जुड़ाव की अनुभूति होती रहे और ऐसे सकारात्मक संगठन निर्मित हो जाएँ जो सहयोग की भावनाओं के साथ परस्पर अभिवृद्धि में सहायक सिद्ध हों । इसी प्रकार विदेशों में भी विशेष अध्याय गठित किए जा रहे हैं जिनकी भूमिका भविष्य में निश्चित ही अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध होगी । इन क्षेत्रवार अध्यायों के अतिरिक्त कुछ अति विशिष्ट अध्यायों का भी गठन किया गया है जिनका उद्देश्य किसी एक विषय पर केंद्रित रहना है अथवा जिनमें किसी एक प्रकार की अहर्ताओं से संबंधित व्यक्ति ही जुड़े हैं । इन अध्यायों में गार्गी (बुद्धिजीवी महिलाओं का अध्याय), आर्यभट्ट (प्रौद्योगिकी के क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों का अध्याय), चाणक्य (शिक्षाविदों का अध्याय), याज्ञवल्क्य (चिंतकों का अध्याय) तथा जीवक (चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों का अध्याय) प्रमुख हैं । चिंतन के बिंदु क्या बिहार ही वह भूमि नहीं है जो प्राचीन काल से ही ज्ञान, शौर्य एवं उद्यमिता की प्रतीक रही है ? क्या हम उन्हीं यशस्वी पूर्वजों के वंशज नहीं हैं जिनमें अखंड भारत के साम्राज्य को स्थापित करने की क्षमता तब थी जब न आज की भांति विकसित मार्ग थे, न सूचना तंत्र और न उन्नत प्रौद्योगिकी ? यह हमारे पूर्वजों के चिंतन की उत्कृष्टता ही थी जिसने बिहार को ज्ञान की उस भूमि के रूप में स्थापित किया जहाँ वेदों ने भी वेदांत रूपी उत्कर्ष को प्राप्त किया । ज्ञान की परंपरा ने ही कालांतर में ऐसे विश्वविद्यालयों को स्थापित होते देखा जहाँ संपूर्ण विश्व के विद्वान अध्ययन हेतु लालायित रहते थे । वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सर्वप्रथम स्वत्व का बोध आवश्यक है चूंकि उर्जा निश्चित आज भी वही है और इसीलिए आगे बढ़ने के लिए आवश्यकता केवल इस चिंतन की है कि उर्जा का प्रयोग हम कहाँ कर रहे हैं ।यदि पूर्वजों के कृतित्वों से हम प्रेरित होते हैं तो स्वयं की असीमित क्षमताओं के विषय में भी हमें स्पष्ट हो जाना चाहिए । यदि उर्जा शिक्षा (Education), समता (Egalitarianism) तथा उद्यमिता (Entrepreneurship) के भावों के समग्र विकास हेतु सकारात्मकता के साथ लग गई तो फिर भला उज्ज्वलतम भविष्य के निर्माण का अवरोध कौन कर सकेगा ! आवश्यकता केवल लघुवादों यथा जातिवाद, संप्रदायवाद आदि संकीर्णताओं से परे उठकर राष्ट्रहित में आंशिक ही सही परंतु कुछ निस्वार्थ सकारात्मक सामाजिक योगदान समर्पित करने की है । आवश्यकता चिंता नहीं अपितु चिंतन करने की है, आपस में संघर्ष नहीं अपितु सहयोग करने की है, उज्ज्वलतम भविष्य के निर्माण हेतु मिलकर कुछ प्रयास करने की है । इतिहास की प्रेरणा में ऐसी अद्भुत शक्ति समाहित है जो बिहार समेत संपूर्ण भारतवर्ष के भविष्य को परिवर्तित करने की क्षमता रखती है । परिवर्तन ही ऋत है ! अभियान गतिमान है ! प्रेरणास्रोत बनें ! दूसरों को प्रेरित करें ! आइए, मिलकर प्रेरित करें बिहार !

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To Inspire the Present Youth of Bihar to establish themselves firmly through education in the spirit of knowledge, promoting the culture of hard work and perseverance against diverting to-wards shortcuts for success and developing the ethos of egali-tarianism by deriving Inspiration from the Spirit of our own An-cestors and Collective Heritage and thereby empowering them for positively contributing towards the Overall Development of Bihar and New India.

To form chapters of Inspired Youth in different districts of Bihar, who would propel the thinking of entire youth and overall socie-ty by acting as agents of change. - The activities of different chapters shall be based upon pro-motion of the 3Es of Education, Egalitarianism and Entrepre-neurship. - The 3Ds for achievement of the goals to be promoted would sequentially be Desire, Dedication and Determination - In the Field of Education, the Endeavour would be to organise workshops for creating consciousness about our own Heritage and fostering the Spirit of Knowledge and Hard Work for at-tainment of desired objectives. Successful Persons and Motiva-tional Speakers from the same districts shall be requested to participate in motivational seminars and workshops from time to time. The effort shall be to reach out to the teachers community and through them to the students. - For the promotion of Egalitarianism, the chapters shall assist and contribute towards social activities touching all sections of society. The effort shall be to connect the needy with those who can and wish to voluntarily contribute, thereby fostering a spirit of mutual respect and equality. - For the promotion of Entrepreneurship, the chapters shall as-sist in the process of knowledge sharing by those successful in their enterprises through the organisation of seminars and workshops from time to time. The role shall essentially be of connecting the experienced mentors with the ones looking for opening of successful start-ups. - The district wise chapters shall make an effort to connect those within the districts with those residing outside the district in other states of India or abroad. - Chapters of Non-Resident Biharis shall also be promoted in important cities of India, where interactive sessions shall be held from time to time in order to inspire the non-resident popu-lation to contribute towards the development process of their districts and in providing assistance of various forms to those in need. - Chapters of Non-Resident Indians from Bihar would be formed for assisting and guiding the chapters within Bihar for the pro-motion of the 3Es.